भाजपा की हार के कारणों का सबसे सटीक विश्लेषण... वेदप्रकाश माथुर की कलम से..


राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम आने से पहले तटस्थ लोगों के लिए उत्सुकता का प्रश्न यह नहीं था कि कांग्रेस जीतेगी या भाजपा बल्कि उनके जेहन में सवाल था कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री ? अशोक गहलोत या सचिन पायलट ? ऐसे में राजस्थान के परिणाम चोंकाने वाले नही हैं। यह चुनाव परिणाम सभी राजनीतिक दलों के लिए एक सबक है कि अब जनता अपने कल्याण और घोषणापत्र में किए गए वायदे पूरे करने के लिए किसी भी सरकार को अनिश्चितकाल तक अवसर प्रदान नहीं करेगी । एक और महत्वपूर्ण शिक्षा कि यदि सत्तारूढ़ पार्टी केवल जातीय समीकरण और धनबल के आधार पर चुनाव जीतने का प्रयास करेगी तो भारी घाटे में रहेगी। राजस्थान में जनता कांग्रेस और भाजपा दोनों को बारी-बारी से अवसर देती है , इस बार कांग्रेस की बाजी थी-यह कहना अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों से मुंह फेरना होगा। चुनाव में पहला मुद्दा किसानों की बदहाली का था।उडद की तुलाई ना होना ,खाद नहीं मिलना बहुत बडे कारण हैं।सरकार किसानों से ट्रेक्टर सहित हर उपकरण,कृषि इनपुट और साधनों पर बगरी टैक्स लेती है तथा शहरी मध्यम वर्ग से वसूले टैक्स का एक बड़ा भाग ग्रामीण विकास पर खर्च करने का दावा करती है, लेकिन वास्तविकता में इसका छोटा सा अंश भी किसान तक तक नहीं पहुंचता। महंगे इनपुट, उत्पाद बिक्री में बिचोलियों के शोषण और भंडारण व विपणन की उचित व्यवस्था के अभाव में साल भर खून -पसीना बहाकर भी किसान भूखा सोता है। नाराज किसान सरकार का तख्ता पलट देता है और आगे भी परेशान होकर कई सरकारों को बदलता रहेगा । राजस्थान में जातिवाद शुरू से रहा है लेकिन भाजपा सरकार ने (पार्टी ने नहीं) इसे विधिवत फैलाया । अजमेर लोकसभा उपचुनाव के दौरान सरकार ने जातिगत आधार पर प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति में जन समस्याएं सुनने के लिए बैठकें आयोजित की थी । जाति के इसी भस्मासुर ने भाजपा की सरकार गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद से युवा वर्ग रोजगार को लेकर काफी आशान्वित था। कौशल विकास को लेकर बड़ी - बड़ी बातें हुई थी । एक ओर तो सरकारी नौकरियां ऊँट के मुँह में जीरा है, दूसरी ओर कौशल विकास के अभाव में बेरोजगारी दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ती रही । भाजपा नेताओं को घर बैठाने में इन बेराजगारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। लोकतंत्र की इस मौजूद स्थिति में नेताओं को लगता है कि भ्रष्टाचार कर धन कमाना उनका विशेषाधिकार है और मतदाता चुनाव में केवल जाति और धर्म को महत्व देता है ।चुनाव परिणाम बताते हैं कि सरकार की छवि भी मायने रखती है ।भाजपा की सरकार ने अपने कर्मचारियों को वेतन और सुविधाओं के रूप में अपनी आर्थिक स्थिति से ज्यादा दिया लेकिन घोषणाओं तथा इनके क्रियान्वयन में विलंब से भाजपा को कर्मचारी असंतोष का खामियाजा भुगतना पड़ा । राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में आधारभूत ढांचे का अभाव और रोज रोज होने वाली हड़ताल से सरकारी अस्पताल केवल अत्यंत गरीब और लाचार लोगों के लिए सरकारी खानापूर्ति ही रह गए हैं ।कितने सरकारी स्कूल है जहां मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं ?आम आदमी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं के लिए बड़ी राशि टैक्स के रूप में दे और उसे सेवा के नाम पर " ठेंगा" मिले तो वह सत्तारूढ़ पार्टी के चुनाव चिन्ह का बटन क्यों दबाए ? राजस्थान में सत्ता का केंद्रीयकरण और अफसरशाही की भागीदारी न होने से उनकी उदासीनता भी भाजपा सरकार की विदाई का कारण बनी। आम आदमी केंद्र व राज्य सरकार के बजट को भी आशा भरी नजरों से देखता है लेकिन उसे निरंतर निराशा मिली । भाजपा के विपक्ष में बैठने का एक कारण यह भी है। जीएसटी और नोटबंदी से भाजपा के परंपरागत व्यापारी वोटर की नाराजगी अभी दूर नहीं हुई है । भ्रष्टाचार और जन आकांक्षा पूरी नहीं होने से आम आदमी ही नहीं भाजपा का कार्यकर्ता भी हैरान परेशान था और वह चुनाव में सक्रिय नहीं हुआ। भाजपा की जीत में कार्यकर्ता और पार्टी में अनुशासन का बड़ा योगदान होता रहा है। इस बार पार्टी का गृहक्लेश सड़कों पर था। नेताओं के कुछ खास लोगों ने आम जनता को तुच्छ समझा और अपने रूतबे का इस्तेमाल कर लोगों पर अपना रौब झाडा। जिसका नतीजा सामने हैं। स्वच्छता अभियान से लेकर जीएसटी तक ,भाजपा की सरकार ने जनता को सुधारने के प्रयास किए लेकिन सरकार के अपने ढांचे में पारदर्शिता और कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए कोई ठोस काम नजर नहीं आया ।भाजपा के लिए हिंदू मतदाता का स्पष्ट संकेत है कि हर बार राम मंदिर, गौरक्षा ,पाकिस्तान विरोध अथवा हिंदुत्व के नाम पर वोट नहीं मिलेगा ।जनकल्याण एवं पारदर्शिता के लिए अच्छी नियत से बहुत परिश्रम करना होगा ।इतना कि उसका परिणाम नजर आए। लेखक कमलेश कमल की एक कविता है --" सत्ता के हाथ झूम रहे हैं/ और पैर थिरक रहे हैं/ अपने ही गानों पर ! " सिर्फ खुद के गानों पर नाच कर कोई भी पार्टी अपने पांच साल के कार्यकाल में आनंदित हो सकती है लेकिन जनता उनका मूल्यांकन अपने मानदंडों से करेगी और उचित समय पर घमंडीयों को तिरस्कृत करने में देर नहीं लगाएगी। ऐसा नहीं है कि सत्ता में बैठी भाजपा समस्याओं के समाधान नहीं देख सकती थी, दरअसल सत्ता में बैठकर नेता समस्याओं को नहीं देख पाते हैं । भाजपा के लिए ही नहीं कांग्रेस के लिए भी संदेश है कि वह भाजपा की गलतियों को नहीं दोहराये और अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करें ।तथा दलालों की राजनीति से बचे।

3 comments:

  1. आरक्षण भी एक बड़ी वजह से जिस की वजह से सवर्ण को आत्महत्या की ओर अग्रसर कर रही है।sc, st, अध्यादेश । आरक्षण को अगर खत्म नही किया तो जल्द ही बहुत बड़ा तूफान फूटेगा ओर जिससे देश को हर तरीके से नुकसान होगा।

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  2. पता नही लोग आरक्षण का विरोध करने से डरते क्यो है ।अब वक्त आ गया हक़ के लिए लड़ने का।

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