रणथंबोर में बाघिन T-60 के शावक की मौत ने फिर खड़े किए सवाल.. आइए करते हैं कुछ एनालिसिस
रणथंबोर में T-60 बाघिन के शावक का शव मिलने से एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि रणथंभौर टाइगर रिजर्व में क्या बाघों के शावक सुरक्षित है...?
बाघ एक ऐसा जीव होता है जो अकेला रहना पसंद करता है और यह मिलन के समय ही बाघिन के साथ कुछ दिन तक रहता है।
लेकिन इसमें चूक कहां हुई इस बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है क्योंकि अधिकारी पर्यटन पर तो विशेष ध्यान देते हैं लेकिन बाघों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है ।
बताया जा रहा है शावक की मौत कुछ दिन पहले ही हो चुकी थी ।क्योंकि जो शव बरामद हुआ है वह कंकाल के रूप में हुआ है ।
ऐसी स्थिति में यह सोचने की आवश्यकता है कि पर्यटन को आगे बढ़ाने के चक्कर में क्या हम बाघों का भविष्य खोते जा रहे हैं ।
क्योंकि एक शावक की मौत किसी भी टाइगर रिजर्व के लिए बहुत ज्यादा नुकसान दायक होती है खास करके तब जब शावक 4 से 5 महीने का हो।
बाघ एक ऐसा जीव होता है जो अकेला रहना पसंद करता है और यह मिलन के समय ही बाघिन के साथ कुछ दिन तक रहता है।
इसके बाद बाघ व बाघिन अलग हो जाते हैं।
जब बाघिन बच्चे पैदा करती है तब बच्चों की शुरुआती उम्र खतरे से भरी हुई होती है ।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे ही कोई बाघ उन बच्चों को देखता है तो वह तुरंत उन्हें मार देता है ताकि उसका स्वामित्व कायम रहे ।
साथ ही वह मादा से मिलन करने के कारण भी ऐसा करता है।
रणथंभौर में भी बाघिन T- 60 के शावक की मौत होने की यह एक बड़ी वजह मानी जा रही है।
लेकिन इसमें चूक कहां हुई इस बारे में कुछ भी कहना संभव नहीं है क्योंकि अधिकारी पर्यटन पर तो विशेष ध्यान देते हैं लेकिन बाघों की सुरक्षा पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है ।
क्योंकि रणथंबोर का पूरा पर्यटन बाघों पर टिका हुआ है लोग देश-विदेश से बाघों के दीदार करने के लिए यहां पहुंचते हैं ।ऐसे में यदि बाघों की मौत होती रही तो रणथंभौर एक दिन भागों से मुक्त हो सकता है।
भारत में बाघ संरक्षण एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और लगातार कोशिश की जा रही है हालांकि IUCN द्वारा जारी लाल आंकड़ों की पुस्तक (Red Data Book ) में बाघों को संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में दर्शाया गया है।
लेकिन कोशिश की जा रही है कि बाघों प्रजाति को लुप्तप्राय जानवरों की सूची से जल्द से जल्द हटा दिया जाए
भारत में बाघ संरक्षण को लेकर कई सारी गतिविधियां की जा रही हैं और साथ ही कई सारे संगठन भी बाघों को बचाने में अपना योगदान दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जुलाई 2019 को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में बाघों की आबादी 2018 में 2967 हो गई थी।
एक अनुमान के अनुसार दुनिया के 70% बाघ भारत में ही पाए जाते हैं।
बाघ अपने आप में एक बहुत रोचक जीव है बाघ की दहाड़ को लगभग 3 किलोमीटर दूर तक सुना जा सकता है।
ऐसे में बाघों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है खासकर कि उनके शावकोंं का ताकि बाघों की आने वाली पीढ़ी को बचाया जा सके और बाघों को संरक्षित किया जा सके।
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