आखातीज पर बरवाड़ा सहित अठारह गांव में नहीं बजती शहनाई, वर्जित रहते हैं मांगलिक कार्य, बांधी जाती है मंदिरों की घंटियां

 


पूरे भारत में अक्षय तृतीया(आखा तीज )का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ में मनाया जाता है।

 इस दिन अबूझ मुहूर्त होने के कारण सभी प्रकार के मांगलिक कार्य बड़े ही खुशी के साथ किए जाते हैं । 

हालांकि इस बार कोविड गाइडलाइन के चलते शादियां तो बंद है । 

 राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में इस दिन सभी प्रकार के शादी विवाह एवं मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं साथ ही चौथ का बरवाड़ा सहित 18 गांवों में अक्षय तृतीया अर्थात आखा तीज पर्व को शोक मनाया जाता है।

 इस दिन पूरे कस्बे में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य बंद रहते हैं । लोग अपने घरों में सब्जियों में छोंक नहीं लगाते तथा हल्दी नहीं डालते । 

इसके साथ साथ कढाई तक भी नहीं चढ़ाई जाती । यह परंपरा सैकड़ों सालों से चलती आ रही है जिसका आज भी निर्वहन किया जाता है। हालांकि इस प्रकार के मांगलिक कार्य चौथ का बरवाड़ा में वर्जित रहने के पीछे कई किवदंतीया प्रचलित है और जन सूतीयों के माध्यम से इससे जुड़ी कई जानकारियां लोगों से सुनने को मिलती है।



 
इन जनसूतीयों के कारण ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि यहां सैकड़ों साल पहले आखा तीज के अवसर पर दूल्हा-दुल्हन बदल जाने के कारण नरसंहार हो गया था और उसमें कई दूल्हा दुल्हन की मौत हो जाने से इस दिवस को शोक के रूप में मनाया जाता है। 

बड़े पैमाने पर पूरे गांव वासी इसी घटना को आखा तीज की वर्जना के रूप में लेते हैं। लेकिन चौथ का बरवाड़ा ठिकाना की पोथियों में वर्णित लेख के अनुसार दूल्हा दुल्हन बदलने जैसी कोई भी घटना यहां नहीं हुई है।


 
वरिष्ठ वकील अजयशेखर दवे ने चौथ का बरवाड़ा ठिकाना की पोथियों के अनुसार बताया कि सन 1319 में वैशाख सुदी सोमवार आखा तीज का पर्व था।

 उस दिन जयपुर के पास स्थित चाकसू के तत्कालीन शासक मेघ सिंह ने बारातियों के रूप में अपने चार सौ सैनिकों को चौथ का बरवाड़ा में प्रवेश करवाया।

चुंकि अक्षय तृतीया का पर्व था और चौथ का बरवाड़ा में चौथ माता के मंदिर में इस दिन वर वधु की हमेशा भीड़ हुआ करती थी।

जब मेघ सिंह व उसकी सेना ने बारातियों के रूप में चौथ का बरवाड़ा में प्रवेश किया तो प्रवेश करते ही उसने एकाएक हमला कर दिया और नरसंहार शुरू कर दिया। 

इस हमले में 84 वर वधुओं के सिर कट गए और उनकी मौत हो गई ।इसके साथ-साथ मेघ सिंह और उसकी सेना ने गांव को भी काफी नुकसान पहुंचाया। 

जब चौथ का बरवाड़ा के तत्कालीन शासक मेलक देव सिंह चौहान को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी सेना के तीन सौ सिपाहियों को मेघ सिंह कि सेना से युद्ध करने भेजा।

 बरवाड़ा के शासक मेलक देव सिंह चौहान की सेना ने मेघ सिंह की सेना को चौथ का बरवाड़ा से खदेड़ दिया। जिन 84 वर वधुओं के सिर कटे थे उनके स्मारक भी गांव में बने हुए हैं ।

उनके शोक में यहां आखा तीज के अवसर पर किसी प्रकार का मांगलिक कार्य नहीं होते और ना ही बहन बेटी को इस दिन यहां से भेजा जाता है।







 बिना लाउडस्पीकर के होती है आरती : आखा तीज पर चौथ माता की आरती बिना किसी ढोल मजीरे और बिना लाउडस्पीकर होती है। मंदिर परिसर में सभी घंटियों को बांध दिया जाता है ताकि कोई भी व्यक्ति घंटियों को नहीं बजा सके

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